प्याजी सी साडी में लिपटी हुई वोह,
खडी थी कहने को बहुत कुछ आतुर,
परतों पे परतें, जैसे तहें हों,
प्याज की भाँती, आंखों में आंसू कुछ,
एक शांत सी नींद और होठों पे मुस्कराहट
परतों के नीचे का रहस्य मिला जब
उनसे नहीं कोई गिला हमें अब
जब अपने ही खो गए अर्थ कहीं सब
खडी थी कहने को बहुत कुछ आतुर,
परतों पे परतें, जैसे तहें हों,
प्याज की भाँती, आंखों में आंसू कुछ,
एक शांत सी नींद और होठों पे मुस्कराहट
परतों के नीचे का रहस्य मिला जब
उनसे नहीं कोई गिला हमें अब
जब अपने ही खो गए अर्थ कहीं सब
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