आज बहुत कुछ कहने के लिए बैठा हूँ बहुत दिनों के बाद। अब सोचता हूँ की कुछ कहने के लिए बचा ही नहीं। लेकिन अभी नहीं कहा ना तो कभी नहीं कह पाऊँगा। शायद याद ही न रहे, और अगर रहा भी तो शायद इस तरह न रहे जैसा अभी है। कुछ तो है जो इस जिंदगी में मैं समझ नहीं पा रहा हूँ, कुछ है जो कहने को बैठा हूँ तो कह नहीं पा रहा हूँ । कई बार जिंदगी में कुछ चाहा है इतनी शिद्दत से, इतनी चाहत से। कई बार छु कर निकल गए हैं वोह पल जिन्हें हम पाने की चाह रखते थे। कई बार ऐसे तपाक से कहना की बस अगला अवाक रह जाए। यह भी नहीं होता अब मुझसे, बहुत सोच के, बहुत परेशान हो के, बहुत संकोच के साथ कहता हूँ आजकल। पहला वाला पागलपन नहीं है और वोह महसूस करने का जज्बा भी शायद नहीं बचा । तुम न हँसे हो, जग तो हँसे है, तुम जो हंसो तो जुलुम होए जाए है आज बहुत तपाक से याद आए तुम। अच्छा लगा जो कभी किसी ने ख़ुद कहा। शायद पहले मैं सुन ही नहीं पाटा था अपनी जिंदगी की उधेड़ बुन में । और अब बस कोई ऐसे ही कुछ कह देता है तो अच्छा लगता है। तपाक से। इस हफ्ते कुछ अजीब सा रहा कुछ याद आना। एक सिरहन सी दौड़ गयी बदन अपनी एक ख्वाहिश को सोच कर कि क्या मैं य...
formulating infinity within zero