शब्दों पे क्या फक्र करूं
जब दुआओं में ही असर नहीं
कुछ कहने को हैं मचल रहे
पर सुनते कोई खुदा नहीं
करनी पे क्या फक्र करूं
जब होते सभी गुनाह सही
इधर लूट कर उधर काट कर
दो गज़ कपड़े का इन्तेजाम नहीं
रिश्तों पे क्या फक्र करूं
जब अपना कोई सगा नहीं
कहने को सब हैं अपने
पर सुनता कोई सदा नहीं
जब दुआओं में ही असर नहीं
कुछ कहने को हैं मचल रहे
पर सुनते कोई खुदा नहीं
करनी पे क्या फक्र करूं
जब होते सभी गुनाह सही
इधर लूट कर उधर काट कर
दो गज़ कपड़े का इन्तेजाम नहीं
रिश्तों पे क्या फक्र करूं
जब अपना कोई सगा नहीं
कहने को सब हैं अपने
पर सुनता कोई सदा नहीं
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