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Showing posts from July, 2008

जावेद अख्तर - अब अगर आओ

अब अगर आओ तो जाने के लिए मत आना सिर्फ अहसान जताने के लिए मत आना मैंने पलकों पे तमन्‍नाएँ सजा रखी हैं दिल में उम्‍मीद की सौ शम्‍मे जला रखी हैं ये हँसीं शम्‍मे बुझाने के लिए मत आना प्‍यार की आग में जंजीरें पिघल सकती हैं चाहने वालों की तक़बीरें बदल सकती हैं तुम हो बेबस ये बताने के लिए मत आना अब तुम आना जो तुम्‍हें मुझसे मुहब्‍बत है कोई मुझसे मिलने की अगर तुमको भी चाहत है कोई तुम कोई रस्‍म निभाने के लिए मत आना

बकवास - २

आज थोड़ा थका सा लग रहा है। पता नहीं क्योँ, इसमे ऐसा कुछ है जो अजीब सा है। लेकिन बस अजीब है। यह वक्त थोड़ा रुका सा हुआ है। कुछ हो नहीं रहा है और उमीदें इतनी है की बस पूछो मत। क्योँ है क्या है यह पूछने का वक्त नहीं है और अगर पूछों अपने आप से तो काफ़ी डर भी लगता है। डर इसका नहीं है की नहीं मिलेगा या नहीं होगा। डर इस बात का कि इसके बाद लड़ने का मन करेगा कि नहीं। यह तो अजीब सी बात हुई न आख़िर मेरे जैसे लोगों के लिए। लेकिन बस अब ठान लूँगा और करने की सोच के भिड जाने को जी चाहता है। कहना भी बहुत मुश्किल है। समझाने का तो बस सब्र ही नहीं है। बहुत लोगों को बहुत बार यह कह के टाल दिया है कि काम है लेकिन कई बार ख़ुद को भी नहीं समझा पाता। एक लगता है कि बस समय कि बर्बादी है जो इतना वक्त इतना अछा समय दे रहा हूँ। बस हर पल एक घुटन है और एक बहुत रुकी हुई सी खामोशी। कई बार सोचा है कि क्या येही है जो मैं करना चाहता हूँ या कोई और मंजिल भी होगी। इस हफ्ते बहुत से लोग निकल गए हैं दुनिया देखने और में सिर्फ़ इन् चार दीवारों में एक एहसास एक ख्वाब टटोल रहा हूँ। पता नहीं यार, बस इतना गज़ब ना ढहाना कि बहुत तमन्नाओं का ख